नरेन्द्र दाभोलकर कि आवाज को चुप नहीं कराया जा सकता; उनका अंधविश्वास के खिलाफ आन्दोलन, अब तक जिंदा है।

अंधविश्वास, रूढ़िवादी परंपराओं और फर्जी बाबाओं के खिलाफ नरेंद्र दाभोलकर ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण द्वारा आवाज़ उठाई, चुनौती दी उन्हें कि कोई चमत्कार कर दिखाए। मगर बदले में कट्टरपंथियों ने उनकी और उनके कुछ तर्कवादी सहयोगियों की हत्या कर दी। जी हां कुछ साल पहले, महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (एमएएनएस) के संस्थापक दाभोलकर (67) की 20 अगस्त, 2013 की सुबह अज्ञात बंदूकधारियों ने उस समय गोली मारकर हत्या कर दी थी जब वह यहां सुबह की सैर पर निकले थे।
फिर…अगस्त, 2018 नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड जांच में पुणे कोर्ट में सीबीआई ने सचिन अंदुरे को अदालत में पेश कर बताया कि उसके साले और करीबियों के पास से मिली पिस्तौल का इस्तेमाल बंगलुरू में गौरी लंकेश की हत्या में हुआ हो सकता है। सचिन अंदुरे से पूछताछ के बाद इस तरह के सुराग मिले।
पुणे : हत्या मामले में आरोपी संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे के खिलाफ अदालत में पूरक आरोप पत्र दायर किया। भावे यरवदा जेल में न्यायिक हिरासत में है जबकि एक वकील पुनालेकर जमानत पर बाहर। 17 अगस्त 2019 को अदालत ने भावे की जमानत याचिका खारिज कर दी गई। मामले में सीबीआई ने भावे और पुनालेकर को 25 मई 2019 को मुंबई से गिरफ्तार किया। सीबीआई ने अपने विशेष लोक अभियोजक प्रकाश सूर्यवंशी के जरिये सहायक सत्र न्यायाधीश एस आर नवांदर की अदालत में पूरक आरोप पत्र दाखिल किया।
सीबीआई के अनुसार भावे ने उस स्थान की टोह लेने में दो कथित शूटरों सचिन अंदुरे और कालस्कर की मदद की थी जहां सुबह की सैर के दौरान दाभोलकर को गोली मारी गई थी। भावे पर हत्या के बाद बंदूकधारियों को मौके से भगाने में मदद करने का भी आरोप है। सीबीआई के अनुसार भावे भी उस दौरान वहां मौजूद था, जहां पुनालेकर ने कालस्कर को उसके मुंबई कार्यालय में हथियारों को नष्ट करने की सलाह दी थी। सीबीआई ने फरवरी 2019 में अंदुरे और कालस्कर के खिलाफ दूसरा पूरक आरोप पत्र दाखिल किया। इस मामले में केन्द्रीय एजेंसी के पहले आरोप पत्र में एक ईएनटी चिकित्सक वीरेन्द्र तावड़े का नाम था। तावड़े को जून, 2016 में नवी मुंबई के पनवेल स्थित उसके घर से गिरफ्तार किया गया था। सीबीआई ने तावड़े को दाभोलकर हत्या के साजिशकर्ताओं में से एक बताया।
खैर जो भी हो, नरेन्द्र दाभोलकर को चुप नहीं किया जा सकता; उनका अंधविश्वास के खिलाफ आन्दोलन, अब तक जिंदा हैं, उसे रोका नहीं जा सकता। ओ समय के साथ बढ़ता ही रहेगा।